कांग्रेस संवादहीनता की शिकार है , पहले गुलाम नबी आज़ाद और अब आनंद शर्मा ने छोड़ी जिम्मेदारियां
By Mahesh Sharma
आज के दिन कांग्रेस जिंदाबाद कैसे कह सकते हैं?
कुछ दिन पहले गुलाम नबी आजाद जी ने जम्मू कश्मीर कांग्रेश की चुनाव अभियान समिति के अध्यक्ष पद से इस्तीफा दिया और कल आनंद शर्मा जी ने भी हिमाचल प्रदेश कांग्रेस की चुनाव संचालन समिति के अध्यक्ष पद से त्यागपत्र देकर, कांग्रेस को वैसा ही एक और झटका दिया है। यह पार्टी के शीर्ष नेतृत्व में संवाद हीनता दर्शाता है।
सन् 2014 के लोकसभा चुनाव के पहले से ही कांग्रेस के बड़े-बड़े दिग्गज, कांग्रेस को मजबूत करने के बदले अपनी राजनीतिक प्रतिष्ठा को बनाए रखने के लिए विभिन्न दलों में अपनी स्थिति का जायजा लेते हुए कांग्रेस छोड़ते रहे हैं। यह प्रक्रिया सतत चलती रहेगी, जब तक कॉन्ग्रेस का शीर्ष तंत्र पुनर्गठित नहीं होता।
वर्तमान में सत्तारूढ़ भाजपा, यह बहुत अच्छी तरह से जानती है कि किस तरह से जनता का ध्यान आकर्षित किया जा सकता है और किस प्रकार से प्रमुख विरोधी पार्टी को रणनीति के चक्रव्यूह में फंसाया जा सकता है।
कांग्रेस की बुरी हार के पश्चात भाजपा ने कांग्रेस के तत्कालीन अध्यक्ष राहुल गांधी की कार्यप्रणाली और कार्य क्षमता पर प्रश्न चिन्ह लगाए और अपने लोगों की बात सुनने के बदले, कांग्रेस अध्यक्ष ने भाजपा द्वारा फेंके गए जाल में फंसकर अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया। तब से कांग्रेश, एक कार्यवाहक अध्यक्ष से काम चला रही है, जब उसे एक मजबूत चुने हुए अध्यक्ष की अत्यंत आवश्यकता है। कांग्रेस यदि शीघ्र ही अपने सभी स्तरों पर चुनाव कराकर, एक सर्व-सम्मत या बहुमत से अध्यक्ष नहीं चुनती और एक सशक्त कार्यकारिणी का पुनर्गठन नहीं करती, तो कांग्रेस के डूबते हुए जहाज तो कोई नहीं बचा सकता।
कांग्रेस ने देश की स्वतंत्रता के साथ रोजगार, शिक्षा, स्वास्थ्य, बिजली, पानी, यातायात, सभी मानवीय आवश्यकताओं को पूरी करने की पूरी-पूरी कोशिश की, जिसकी 50 वर्ष से अधिक उम्र की पीढ़ी गवाह है। सन् 1989 के बाद कभी भी कांग्रेस की पूर्ण बहुमत की सरकार नहीं रही, जिससे 50 वर्ष से कम उम्र के लोगों को उसकी सरकार देखने का मौका नहीं मिला।
आज देश में रोजगार, शिक्षा और स्वास्थ्य, मानव जीवन की तीनों जरूरी आवश्यकतायें, दिनों-दिन सरकारी क्षेत्र से निजी क्षेत्र में तेजी से जा रही हैं और इन क्षेत्रों को पुनः सरकारी क्षेत्र में लाने के लिए कॉन्ग्रेस पार्टी का ससक्त होना अत्यंत आवश्यक है।
जब कोई पुरानी इमारत दरकने लगती है तो उसके सच्चे रक्षक, इमारत के रखरखाव के लिए सभी आवश्यक कदम उठाते हैं, जिससे उसका गरिमामय अस्तित्व बना रहे। वहीं उसके छद्म हितैषी, इमारत की ईंट, पत्थर, लकड़ी सभी उखाड़ उखाड़ कर ले जाते हैं। 2014 से कांग्रेस के बड़े-बड़े दिग्गज, अपनी पार्टी को नुकसान ही पहुंचाते रहे हैं और जिधर जगह मिली, उसी पार्टी में जाते रहे हैं। आशा है आज कांग्रेस विचारधारा के कट्टर समर्थक, शीघ्र से शीघ्र कांग्रेस में सभी चुनाव करा कर अपनी पार्टी को एक सशक्त अध्यक्ष और सशक्त कार्यकारिणी देने में सफल होंगे, जिससे कांग्रेस पार्टी की कार्य क्षमता और देश हित में फिर जी जान से लड़ने की शक्ति पुनर्जीवित हो सके।