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Uttrakhand

कब थमेगी उत्तराखंड के जंगलों की आग ?

उत्तराखंड के पहाड़ी क्षेत्रों यानि जंगलों में बढ़ती आग की घटनाओं ने न सिर्फ तापमान को बढ़ा दिया है बल्कि वहां के फ़्लोरा और फौना को भी बुरी तरह से प्रभावित किया है.

गर्मियों के आते ही जिस प्रकार पहाडों के हज़ारों एकड़ हरे भरे जंगल इस भयानक अनियंत्रित आग से पूरी तरह तबाह हो जाते हैं वही दूसरी तरफ यहाँ वास कर रहे जानवर , इंसेक्ट्स , हाथी, रीछ, बाघ, गुलदार, टाइगर्स वगैरह या तो भारी तादाद में मर जाते हैं या फिर अपनी जान बचाने के लिए शहरों और गाँव की तरफ रुख करते हैं .

जंगल आग के चलते भोजन के आभाव में इनका मानव जाती पर हमला होता है. ऐसा नहीं है की पहाड़ के मौजूदा भयंकर आग कोई नयी घटना है बल्कि ये घटनाएं हर गर्मियों में होती हैं और सैकड़ों / हज़ारों हेक्टेयर जंगल राख में तब्दील हो जाते हैं .

लेकिन कोरोना काल के दौरान ये आग काम ही लगी ये बहुत ही हैरतअंगेज़ बात है. इससे साफ़ जाहिर होता है की इस गोरख धंधे में लिप्त माफिया कोरोना के चलते सक्रिय नहीं हो पाया.

जंगल की इन आग में जहाँ जंगलों को नुक्सान होता है बेतहाशा स्तर पर वहीँ इसकी चपेट में गाओवासी , फारेस्ट एम्प्लाइज भी आते हैं और हर गर्मियों में अपनी जान से हाथ धोते हैं.

सबसे हैरतअंगेज़ बात ये है की हर साल आने वाली भारी भरकम आग जो पहाड़ के गढ़वाल और कुमाऊँ जंगलों को भरी भरकम नुक्सान पहुंचाते हैं , पर्यावरण को दूषित करते हैं, हमारे प्राकृतिक जल स्रोतों को बेतहाशा स्तर पर तबाह करते हैं, नदियों को प्रभावित करते हैं , जानवरों की जान लेते हैं और भोजन की तलाश में गाँव की तरफ धकेलते हैं आदि , हमारी सरकार , वन विभाग, पुलिस विभाग क्यों सबक नहीं लेती और जनता की भागीदारी के साथ इन जंगल आगों को क्यों नहीं नियंत्रित करते , ये एक बड़ा सवाल है ?

कहाँ हैं वो पर्यावरण विध पद्मश्री सज्जन , कहाँ हैं वो हज़ारों गैर सरकारी संस्थाएं जो करोड़ों रुपये डकार रही हैं पर्यावरण और जंगल संरक्षण के नाम पर ? कहा हैं हमारे मुख्यमंत्रीजी और क्या ठोस कदम उठाये जा रहे इस दिशा में ? है कोई स्थायी समाधान इन जंगल आग का, जिसने उत्तराखंड के सभी जिलों के जंगलों को अपनी जद में ले लिया है.

इसी बीच एशिया नेट न्यूज़ के मुताबिक उत्तराखंड के पहाड़ी इलाकों में गर्मी शुरू होने के साथ अक्सर एक समस्या देखने को मिलती है। गर्मी शुरू होते ही जंगल जमकर धधक रहे हैं। यहां के हालात ऐसे है कि अब तक कुमाऊं के नॉर्थ रेंज में 768 हेक्टेयर जंगल जलकर खाक हो गया है। जंगलों में लगी आग से कई दिक्कतों का सामना कराना पड़ रहा है। जंगलों में लगातार धधक रही आग से कई तरह के खतरे भी सामने आ रहे हैं।

इस बार कुमाऊं के पहाड़ी इलाकों में जंगल धधक रहे हैं वैसा शायद ही कभी हुआ हो। वन विभाग की सारी कोशिशें नाकाम साबित होती हुई नजर आ रही है। कुमाऊं के चार पहाड़ी जिले अल्मोड़ा, बागेश्वर, चम्पावत और पिथौरागढ़ में अब तक करीब 430 घटनाएं आग लगने की हो चुकी हैं। जिनमें आरक्षित वनों में 294 बार जबकि सिविल वनों में 136 बार आग लग चुकी है। इतना ही नहीं आग लगने से 21 लाख 89 हजार का नुकसान भी हो चुका है।

लगातार धधक रही आग भले ही बारिश होने पर कुछ इलाकों में थम रही हो लेकिन पारा चढ़ने के साथ ही ये फिर विकराल रूप अख्तियार कर रही है। अप्रैल के महीने में रिकॉर्ड तोड़ चुकी फॉरेस्ट फायर की बढ़ती घटनाओं ने वन विभाग को कठघरे में खड़ा कर दिया है। नॉर्थ जोन के वन संरक्षक प्रवीन कुमार की मानें तो जंगली में लग रही आग को बुझाने के लिए वनकर्मी तैनात किए गए हैं। उन्होंने आगे कहा कि फायर स्टेशन संवेदनशील स्थानों पर बनाए गए है और साथ ही संविदा पर भी कर्मचारी आग बुझाने के लिए रखे गए हैं।

पहाड़ों के जंगलों में लगी आग से वन संपदा तो खाक हो ही रही है साथ ही वन्य जीवों के जीवन पर भी संकट में हैं। हालात यह है कि जंगली जानवर जिंदगी बचाने के लिए रिहायसी इलाकों की ओर कूच करने को मजबूर हो चुके है। लेकिन इसके अलावा कई जानवर जंगलों में जलकर राख हो गए। भू-वैज्ञानिक डॉ जेएस रावत की मानें तो लगातार बढ़ रही आग की घटनाओं से जहां पर्यावरण को खासा नुकसान हो रहा है। वहीं प्राकृतिक जलस्रोतों को भी इससे खासा नुकसान हो रही है। यही नहीं हिमालय की जंगलों की जैवविविधता के लिए ये आग किसी खतरे से कम नहीं है।

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