एक बोनसाई बड़ की लघु कथा
RAJIV NAYAN BAHUGUNA, COLUMNIST , SR. JOURNALIST
अभी अभी मुझे बड़थवाल कुटुंब समारोह नामक आयोजन का एक न्योता मिला है, जिसके कारण मुझे उत्तराखण्ड के एक विस्मृत समाजवादी नेता विनोद बड़थवाल पर पुनः लिखने का बहाना मिल गया.
कल ही मैं प्रसंग वश उनका ज़िक्र किया हूँ.
ढूंढने पर मुझे विनोद बड़थवाल और सूर्य कांत धस्माना का एक पुराना चित्र भी मिल गया.
इस चित्र में दोनों युवा नेता के अनुरूप सूटेड बूटेड नज़र आ रहे हैँ, जैसा कि वे दोनों हमेशा रहे.
बड़थवाल तो असमय मर गये, लेकिन धस्माना अभी स्वस्थ और सक्रिय हैँ. यद्यपि पहले जैसे चर्चित नहीं.
ये दोनों हमेशा ही राहुल गाँधी की तरह युवा नेता रहे, और रहेंगे.
एक बार युवा नेता बन जाने के बाद मनुष्य आ मरण चंद्र शेखर की तरह युवा तुर्क बना रहता है.
बड़थवाल और धस्माना युवावस्था से ही हेमवती नंदन बहुगुणा जैसे तुर्श, सलीके दार, अप टुडेट और हमेशा सक्रिय रहने वाले पुरुष के सम्पर्क में आ गये थे. अतः उनसे दोनों ने बहुत कुछ सीखा होगा.
हेमवती नंदन बहुगुणा के मरने के बाद इन दोनों ने राजनीति के अनाथाश्रम में शरण लेने की बजाय मुलायम सिंह यादव छाँव गही, जिन्हें उत्तराखण्ड में आधार की तलाश थी.
बड़थवाल के एक या संभवतः दो भाई गैंग वार में मारे गये.
बल्कि इसे गैंग वार कहना भी अनुचित होगा. क्योंकि बहुत कमज़ोर आर्थिक पृष्ठ भूमि से आये विनोद बड़थवाल ने साइकिल स्टेण्ड के ठेका जैसे वैध और मामूली धंधे में अपने भाइयों को उतारा. लेकिन कौरवों की तर्ज़ पर देहरादून में व्याप्त तत्कालीन गुंडे किसी अन्य को कुछ भी देने को राज़ी नहीं थे.
तब मुलायम सिंह ने उन लुच्चे डकैतो को मरवा कर इन्हे त्राण दिलवाया.
अपने दुष्ट ग्रहो की चाल से बड़थवाल और धस्माना उस समय मुलायम सिंह यादव के उत्तराखण्ड स्थित अभिकर्ता थे, जब मुज़फ्फरनगर जैसी जघन्य वारदात हो गई.
यद्यपि इसमें इन दोनों की कोई भूमिका न थी.
उसके बाद ये उत्तराखण्ड के पर्वतीय जनो की आंख की किरकिरी बन गये.
मुलायम सिंह अपने शरणागत के वारे न्यारे कर देते थे, जो इन दोनों के भी किये.
मैंने एक व्यंग्य दंत कथा सुनी है.
जब मुलायम सिंह का कोई निकटस्थ समाजवादी बड़थवाल को पार्टी का उत्तराखण्ड प्रभारी बनाने की सिफारिश लेकर गया, तो मुलायम सिंह ने आशंका जताई – इस लड़के के ऊपर अभी तक बलवा, शांति भंग जैसे दो चार ही मामूली मुक़ददमे दर्ज़ हैँ. हत्या या डकैती का एक भी नहीं. तो इसे इतनी बड़ी ज़िम्मेदारी कैसे दी जा सकती है?
ब हरहाल बड़थवाल अंत समय तक मुलायम सिंह के साथ बने रहे.
वह एक व्यवहार कुशल, होशियार, फुर्तीले तथा मदद गार राजनेता थे, लेकिन बहुत कमज़ोर वक्ता.
राज्य गठन के बाद उन्होंने जोखिम लेकर देहरादून में मुलायम सिंह की सभा करवाई.
मैं भी कौतूहल वश सुरक्षा की कई बाड़े लाँघता उस सभा में पहुंचा.
मुलायम सिंह की उपस्थिति से बड़थवाल ओत प्रोत, बिह्वल तथा प्रगल्भ थे.
हुलसते और किलकते उन्होंने अपने भाषण में मुलायम सिंह को इंगित कर कहा :- नेता जी आपने पधार कर बड़ी कृपा की. लेकिन अगली बार अमर सिंह जी को अवश्य साथ लेकर आएं.
मानो अमर सिंह जी कोई मुलायम सिंह की बीबी हों, जिन्हें हर समय, हर जगह उनके साथ होना चाहिए.
मैं मंच के सामने ही बैठा था, और यह सुन कर बहुत ज़ोर से हंस पड़ा.
सभा में मुलायम विरोधी नारे लगाते इक्का दुक्का उत्तराखंडियों को विनोद बड़थवाल के गण दबोच कर पिटाई कर दे रहे थे.
लेकिन मेरे बारे में वह तय न कर पाये कि इसका क्या करना है 😍
(इस आलेख में व्यक्त विचार वरिष्ठ पत्रकार, स्तंभकार राजीव नयन बहुगुणा के निजी विचार हैं. समाचार वेबसाइट यूकेनेशनन्यूज़ आवश्यक रूप से लेख की सामग्री की पुष्टि नहीं करती है)