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Uttrakhand

एक फुटबाल खिलाड़ी ऐसा भी / चौथी स्टेज का कैंसर, फुटबाल खेलने उतर जाता है मैदान में

साई कोच जग्गू भाई ने पेश की मिसाल, जिंदगी जिंदादिली का नाम,

9 से 11 जून को सोशल बलूनी पब्लिक स्कूल के मैदान में पहले नेशनल मास्टर्स स्पोर्ट्स खेलों का आयोजन हुआ। इसमें देश के सात राज्यों की टीमों के साथ ही नेपाल ने भी भाग लिया। फुटबाल प्रतियोगिता का मुख्य आकर्षण था। 60 वर्ष से अधिक आयुवर्ग की प्रतियोगिता में इसमें देहरादून की यूके मास्टर्स टीम की ओर से 65 वर्ष के जगमोहन सिंह नेगी ने ओएनजीसी की टीम के साथ शानदार खेल दिखाया लेकिन नेपाल के साथ खेले गये मैच में उनका प्रदर्शन थोड़ा कमजोर रहा। कारण, उन्हें डिसेंट्री हो गयी थी क्योंकि कीमो कराया था। जगमोहन नेगी को फुटबाल जगत में जग्गू भाई के नाम से जाना जाता है। साई कोच रहे जग्गू भाई को रेक्टम कैंसर है और चौथी अवस्था में है। उनकी पांच कीमो हो चुकी हैं, इसके बावजूद वह फुटबाल मैदान में उतर जाते हैं।

जग्गू भाई ने उत्तराखंड में फुटबाल को नया आयाम दिया है। पौड़ी गांव में जन्में जग्गू भाई को बचपन से ही फुटबाल का शौक था। हंसते हुए बताते हैं कि गांव में फुटबाल नहीं होती थी तो चकूतरा से खेलते थे। हर पहाड़ी की तरह उन्हें भी आर्थिक दिक्कत रही। वह बताते हैं कि फुटबाल किट(जूते) खरीदने के लिए पैसे नहंी थे तो गोलकीपर बन गये। उस दौर में किट के नीचे कील लगी होती थी, पैर पर लगने पर बहुत खून निकलता था। गोलकीपिंग में उनका कोई सानी नहीं था। 1979-80 में दून स्टार के गोलकीपर रहे। एनआईएस पटियाला में प्रशिक्षण हासिल करने के बाद वह साई स्पोर्ट्स अथारिटी आफ इंडिया के कोच बन गये। उनकी नियुक्ति गुजरात यूनिवर्सिटी में हुई तो उन्हांेने वहां के बिजनेस माइंडेड युवाओं को फुटबाल प्रेमी बना दिया और गुजरात की टीम ने पहली बार नेशनल खेला। उत्तर प्रदेश के शहर हरदोई में भी रहे लेकिन तय समय पर मैदान में पहुंच जाते थे।

पौड़ी में कोच के तौर पर उन्होंने उत्तराखंड की लड़कियों की फुटबाल टीम तैयार की। यह पहली बार था कि पहाड़ की बेटियों ने फुटबाल में भी अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया। लगभग 70 लड़कियों को फुटबाल टीम के लिए तैयारी की। काशीपुर से 2019 में वह रिटायर्ड हो गये। इसके बाद मास्टर्स फुटबाल से जुड़ गये। 2022 से उन्हें रेक्टम कैंसर है। कैंसर के खिलाफ बड़ी बहादुरी से जंग लड़ रहे हैं। इसके बावजूद उनका फुटबाल प्रेम नहंी छूट रहा है। वह नियमित फुटबाल मैदान में पहुंच जाते हैं। मैंने तीन-चार दिन पहले फोन कर हालचाल पूछा तो बोले, कमजोरी महसूस हो रही है। मैंने कहा, आप जल्द ठीक हो जाओगे, तो फुटबाल खेलना, वह कहते हैं, फुटबाल ही तो जीवन है, नहीं खेलूंगा तो जिऊंगा कैसे?

इस जिंदादिल खिलाड़ी के जज्बे को सलाम और उनके जल्द स्वास्थ्य लाभ की कामना।

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