एक आवश्यक नेता की अनुपस्थिति

RAJIV NAYAN BAHUGUNA

उत्तराखण्ड कांग्रेस की केदारनाथ पद यात्रा जब अपने अंतिम चरण में है, तो उसके एक वाचाल – वागमी, उत्साही, त्वरा सम्पन्न और रोचक नेता सूर्यकान्त धस्माणा को अब तक यात्रा में शामिल न देख मैं चकित हूँ.
इस तरह की यात्रा के वह सर्वथा उपयुक्त पात्र हैँ.
कभी विनोद बड़थवाल और धसमाना का युग्म ध्यानाकर्षित करता था .
बड़थवाल को छोड़ धस्माना कालांतर में कांग्रेस में भर्ती हो गये, लेकिन उनमे द्वन्द कभी नहीं रहा.
मैं इन दोनों के ग्राफ को अतिशय रुचि के साथ देखता रहा हूँ.
मैंने पहली बार इन दोनों को उत्तराखण्ड आंदोलन के चरम काल में देखा था, जब मुझे उनके बारे में कुछ भी मालूम नहीं था..
मेरे कॉलेज़ काल में विवेका नन्द खंडूरी की तूती बोलती थी.
राज्य आंदोलन के तनाव पूर्ण दिनों में मैं एक बार अख़बार की नौकरी से छुट्टी पर घर आया था, और अपने ज्येष्ठ मित्र नवीन नौटियाल के साथ देहरादून घंटाघर चौराहा पर पान वास्ते खड़ा था.
हठात मैंने देखा कि कुछ हथियार बंद पुलिस वाले दो सुदर्शन और कुलीन दिखने वाले युवको को घेर कर पलटन बाज़ार में घुस गये.
वे दोनों युवा इससे बेपरवाह हँसते और बातें करते हुए निडर हो पुलिस वालों के साथ चल रहे थे, मानो भगत सिंह और राजगुरु हँसते हँसते फांसी के फंदे को जा रहे हों.
उन दिनों मुलायम सिंह की पुलिस द्वारा युवको को बेवजह पकड़ पर पीटना, और यहाँ तक कि मार डालना भी आम था.
मैंने नवीन नौटियाल से कहा कि यह क्या अंधेर गर्दी है?
दिन दहाड़े दो शरीफ़ लड़कों को पुलिस हाँके ले जा रही है.
हमें हस्तक्षेप कर इनके प्राण बचाने चाहिए.
तब नवीन नौटियाल ने समाधान किया कि ये दोनों मुलायम सिंह के ख़ास बड़थवाल और धस्माना हैँ. और पुलिस इन्हे मारने नहीं, बल्कि बचाने वास्ते घेरे है.
फिर फाइनली उत्तराखण्ड आने पर महान पत्रकार कुंवर प्रसून के आग्रह पर मैं इन दोनों से मिला. कुंवर प्रसून मानते थे कि इन दोनों को उत्तराखण्ड विधानसभा में होना चाहिए.
जबकि अधिसंख्य गढ़वाली समुदाय उनके सख्त विरोधी था.
अलग अलग राजनीतिक दल अपनाने पर भी वह दोनों कभी आमने सामने नहीं आये.
दोनों ने लोकल अखबारों को साध रखा था. और रोज़ प्रेस कॉन्फ्रेंस करते थे. टकराव न हो, इसलिए एक डोईवाला में करता था और दूसरा विकास नगर में.
बड़थवाल के घर मैं एक बार गया, और मैंने उन्हें छवि के विपरीत विनम्र और सादगी सम्पन्न पाया.
धस्माना से मेरी बाद में मैत्री हुई और प्रायः उनके दफ्तर जा बैठता था, जहां पत्रकारों और फरियादियों की भीड़ लगी रहती थी.
उन दिनों धस्माना एक ज़ेबी पार्टी शरद पवार वाली कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष थे.
संयोगवश मेरे क्षेत्र घनसाली के लोकप्रिय नेता बलवीर सिंह negi कांग्रेस टिकट न मिलने पर इस पार्टी से चुनाव जीत गये.
तब धस्माना ने दो नेम प्लेतें बनवायी. एक पर लिखा था – अध्यक्ष, फलां फलां पार्टी. ( मुझे उस पार्टी का नाम याद नहीं ).
यह तख्ती अपनी मेज़ पर रख दी.
और दूसरी तखती पर लिखा था – नेता विधायक दल, फलां फलां पार्टी.
लगभग निर्दलीय जीते इकलौते विधायक की इस पदवी से मुझे बे साख्ता हंसी छूट गई 😍
धस्माना स्थापित करना चाहते थे कि वह उस पार्टी के अध्यक्ष हैँ, जिसका बाकायदा एक विधायक दल है.
लेकिन बलवीर सिंह negi उस तखती लगी मेज़ पर कभी नहीं बैठे. उनकी अलग ठसक थी.
देवताओं और जनता ने बड़थवाल और धस्माना के साथ न्याय नहीं किया.

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