एक अभागी सड़क ऐसी भी,11 साल बाद भी, कच्ची और गडढों से भरा है बिडाला-बैंदुल-तुनाखाल मोटरमार्ग
गुणानंद जखमोला
एक अभागी सड़क ऐसी भी
- तीन किलोमीटर की दूरी में कांप गया तन-मन
- 11 साल बाद भी कच्ची और गडढों से भरा है बिडाला-बैंदुल-तुनाखाल मोटरमार्ग
ये जो सड़क की फोटो है वह है पौड़ी के संतूधार-किर्खू मोटरमार्ग से जुड़ी पीएमजीएसवाई की है। यह इस सड़क का सबसे खूबसूरत पार्ट है। बिडाला बाजार से 200 मीटर की दूरी से यह सड़क सिरुंड, मुसासू, बैंदुल होते हुए तुनाखाल पर मिलती है। लगभग दस किलोमीटर की इस कच्ची सड़क पर वाहन चालक और यात्रियों की सांसें अटक जाती हैं। मैं इस सड़क पर सिरुंड होते हुए तुनाखाल तक चलना चाहता था लेकिन मैं इस सड़क पर तीन किलोमीटर ही चल सका। मेरे हाथ-पैर कांपने लगे तो सिरुंड गांव से वापस लौटा और नौगांवखाल होते हुए तुनाखाल ईडा गांव तक पहुंचा।
यह बात मैं तब कर रहा हूं जब ऋषभ पंत की मर्सडिजीज और हाईवे पर गड्ढे की हो रही है। ऋषभ लक्की है कि उसके सच या झूठ कहने के बावजूद हाईवे अथारिटी ने नारसन की पूरी सड़क छान मारी और दावा किया कि एक भी गड्ढा नहंी था। लेकिन जो ग्रामीण तुनाखाल- सिरुंड की इस सड़क चलते हैं वह भगवान भरोसे चलते हैं। तुनाखाल की इस सड़क पर सैकड़ों गड्ढे हैं और लोगों के पास इस सड़क पर चलने के अलावा कोई चारा नहीं है।
यह सड़क 2012 में बनी और आज तक ऐसे ही बदहाल है, क्योंकि इस पर कोई ऋषभ नहीं चलता। कितनी अभागी है यह सड़क। इसकी सुध लेने वाला कोई नहीं। जेई, ठेकेदार, दलाल से लेकर चीफ इंजीनियर तक इस सड़क का कमीशन पहुंचा होगा, लेकिन बेईमान और भ्रष्ट व्यवस्था में शर्म कहां कि सड़क की सुध ले।
शासन-प्रशासन इंतजार कर रहे हैं कि कब हादसा हो तो फिर इस सड़क की सुध लें।
उत्तराखंड में सडकों से जुड़े निर्माण से जुडा बहुत शक्तिशाली ठेकेदार टाइप माफिया इको सिस्टम है . जिसने आज तक खरबों रुपिया डकार लिया है पर काम कुछ होता नहीं . ये तंत्र बहुत शातिर ढंग से काम करता है . इस तंत्र ने आजादी के बाद सबसे अधिक मुनाफ़ा बटोरा है और आज हालत यह है कि इनकी ये नीयत गाँव के खडन्जों और छोटी छोटी बटियों तक में रहती है. हमारे उत्तराखंड में कई ऐसे मार्ग हैं जिनमें आज़ादी के बाद से ही काम चल रहा पर काम कुछ दिखाई नहीं देता . किताक्नेर लोग काम काम के नाम पर पैसा इधर उधर कर लेते हलिन उसकी सूची लम्बी है — जैसे वन सरपंच काम लगाने का स्वांग करता है फिर वही पर प्रधान वही करता है इसके BDC मेम्बर फिर जिला पंचायत सदस्य फिर प्रमुख साहब फिर जिला पंचायत अध्यक्ष साहब फिर विधायक जी ……… पर सड़क वैसी की वैसी रहती है लेकिन इसके नाम पर काम करवाने वालों की हल्द्वानी या देहरादून में कोठी अवश्य बन जाती है … इस पर लगाम इस लिए नहीं लग पाती क्योंकि चुनाव में ठेकेदार माफिया नेताजी का बहुत ही सहयोगी बन तारण हार बना रहता है . और ये चक्र चलता रहता है . उत्तराखंड में यहाँ निवासियों की और जो बाहर से आते हैं उन निर्दोष लोगों की मृत्यु हो जाती है सड़क दुर्घटनाओं से. और आये दिन जानमाल की हानि होती है इसलिए गुणानंद जखमोला जी को एक सड़क का नमूना सामने रख कर अपना और निर्दोष राहगीरों का दुःख सामने लाने का साहस करना ही पड़ता है .