ऋतु जी, कैसे निष्पक्ष होगी भर्तियों की जांच? एक वरिष्ठ पत्रकार का सवाल
ऋतु जी, कैसे निष्पक्ष होगी भर्तियों की जांच?
- संसदीय कार्यमंत्री और वित्त मंत्री हैं प्रेमचंद अग्रवाल
- क्या अग्रवाल को नैतिकता के आधार पर पद पर रहने का अधिकार है? – गुणानंद जखमोला
क्या इस देश में सवाल करना गुनाह है? ऐेसे में जब मैं सवाल करता हूं तो लोगों को मिर्च लग जाती है। उन्हें मेरे द्वारा संसदीय तरीके से पूछे गये सवाल भी तीर की तरह चुभते हैं। वह मुझे धमकाते हैं, दबाव डलवाते हैं, केस करने या मानहानि का केस कर देने की धमकी देते हैं। मैं स्पष्ट कर देना चाहता हूं कि मैं पत्रकार हूं और पूरा देश एक पवित्र किताब से चल रहा है और वह किताब है हमारे देश का संविधान। संविधान में मुझे और सभी नागरिकों को सवाल पूछने और अभिव्यक्ति की आजादी दी हुई है। लोग मेरे सवाल पूछने के बावजूद संविधान की धारा 19 (2) और आईटी एक्ट 66 ए को जाने बिना ही मुझे घेरने की कवायद करते हैं। मैं इतनी बड़ी भूमिका इसलिए बना रहा हूं कि मैं जनता को बताना चाहता हूं कि पत्रकार की हैसियत से महज सवाल करता हूं और लोग मेरे सवालों को अपने मान-अपमान से जोड़ते हैं। यदि ऐसे लोगों को अपने अपमान की इतनी चिन्ता है तो ऐसा काम ही क्यों करते हैं?
अब देखो मेरे नये सवाल। स्पीकर प्रेमचंद अग्रवाल के कार्यकाल के दौरान विधानसभा में हुई भर्तियों की जांच चल रही है। प्रेमचंद अग्रवाल मौजूदा समय में वित्त मंत्री हैं और संसदीय कार्यमंत्री भी। ऐसे में क्या जांच निष्पक्ष हो सकती है जबकि उन्होंने तदर्थ तौर पर भर्ती कर्मचारियों की वित्तीय स्वीकृति की फाइल पर वित्त मंत्री के तौर हस्ताक्षर किये हैं? क्या प्रेमचंद अग्रवाल को नैतिक आधार पर मंत्री पद पर बने रहने का अधिकार है?
जब सीएम धामी ने उनके समय की भर्तियों की जांच के लिए स्पीकर ऋतु खंडूड़ी को पत्र लिखा तो नैतिकता के आधार पर प्रेमचंद अग्रवाल को यह पद छोड़ देना चाहिए था। क्योंकि जांच प्रभावित हो सकती है। दूसरे उन पर सवाल उठे हैं। जब स्पीकर खंडूड़ी ने जांच समिति बनाई तब तो निश्चित तौर पर उन्हें पद छोड़ना था या सीएम धामी को उन्हें कैबिनेट से हटा देना चाहिए था, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। क्यों? एक ही मामले में सरकार का दो तरह का रवैया कैसे हो सकता है? यूकेएसएसएससी के अध्यक्ष एस राजू से इस्तीफा मांग लिया गया और सचिव संतोष बड़ोनी को लापरवाही पर निलंबित किया गया लेकिन प्रेमचंद अग्रवाल ने तो बैक डोर से भर्तियां की हैं? मीडिया के सामने स्वीकार भी किया? फिर उन्हें क्यों अभयदान दिया जा रहा है?