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ऊँचे घोर मंदिर के अंदर रहन वारी

भारत का यह जाना माना व्यापारी दम्पत्ति लगभग प्रति वर्ष उत्तराखण्ड के बद्री और केदार धाम आता है.
यह अच्छी बात है, और इस पर कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए.
सतर्क रहने योग्य सिर्फ़ दो बातें हैं.
पहला तो यह कि इन्हे यथा सम्भव आम श्रद्धालु की तरह पंक्ति बद्ध हो दर्शन परशन करना चाइये.
यदि इनके पास अधिक पैसा है, और लूट का डर है, तो ये अपना पूरा पैसा गाड़ी में रख आएं. ज़ेब में उतना ही रखें, जो भगवान को चढ़ाना हो.
वैसे भी बद्रीनाथ धाम में कोई आपसे छिनैती नहीं करने जा रहा.
दूसर यह कि कोई भी धन पति अपने धन बल से पवित्र मंदिरों की संप्रभुता को प्रभावित न कर सके.
सत्तर के दशक में कभी प्रतिष्ठित बिड़ला जी ने श्री बद्रीनाथ के मंदिर समेत मुख्य द्वार का काया कल्प करवाना चाहा.
तत्कालीन उत्तरप्रदेश सरकार उनके साथ थी.
इस पर सुधी जनों में हा हा कार मच गया.
आशंका पैदा हो गई कि श्री जी का मूल स्वरूप ही खंडित हो जायेगा.
सभी जानते हैं कि बिड़ला परिवार ने दिल्ली समेत देश भर में श्री लक्ष्मी नारायण मंदिर बनवाये हैं.
लेकिन उन्हें बिड़ला मंदिर के नाम से ही जाना जाता है.
लक्ष्मी नारायण मंदिर कोई नहीं कहता.
उस विवाद में बिड़ला जी ने तर्क दिया, मैं मंदिर श्री से कुछ ले नहीं रहा, दे ही रहा हूँ.
लेकिन विद्वानों का भय भी निर्मूल न था.
गढ़वाल वासी हेमवती नंदन बहुगुणा उन दिनों केंद्र में राज्य मंत्री थे.
उन्होंने तोड़ निकाला और बिड़ला जी से कहा, तुम जो धन मंदिर पर लगाना चाहते हो, उससे यहाँ एक उच्च शिक्षा संस्थान खोल दो. पुण्य उतना ही मिलेगा.
बद्रीनाथ जी में सिर्फ़ रंग रोगन करवा दो.
निदान, बिड़ला जी ने श्रीनगर गढ़वाल में एक डिग्री कॉलेज़ खुलवा दिया.
तब गढ़वाल विश्व विद्यालय न था. वही बाद में विश्व विद्यालय का बिड़ला परिसर कहलाया.
मेरी व्यक्तिगत राय है कि किसी भी व्यक्ति से मंदिर के लिए दस हज़ार से अधिक चंदा कबूल न किया जाये.
तस्कर हाजी मस्तान लोक स्वीकृति के लिए मस्जदों और हाजियो को बढ़ चढ़ चंदा देता था.
कम लिखे को अधिक समझना, और चिट्ठी को तार समझना.

(इस लेख में व्यक्त विचार लेखक के निजी हैं)

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