उत्तराखंड में शिक्षा व्यवस्था:
देवेश आदमी
वर्तमान स्थिति और सुधार की संभावनाएं
उत्तराखंड, जो अपनी भौगोलिक विविधता और प्राकृतिक सुंदरता के लिए जाना जाता है, शिक्षा के क्षेत्र में अभी भी कई चुनौतियों का सामना कर रहा है। यहां प्राथमिक से उच्च माध्यमिक स्तर तक शिक्षा की स्थिति, स्कूलों का बुनियादी ढांचा, शिक्षकों की उपलब्धता और छात्रों का नामांकन जैसी समस्याओं के साथ-साथ सुधार के लिए कई अवसर भी हैं। इस लेख में उत्तराखंड के सरकारी स्कूलों की शिक्षा व्यवस्था पर विस्तृत चर्चा की गई है। उत्तराखंड में शिक्षा का ढांचा मुख्यतः सरकारी और निजी स्कूलों पर आधारित है। उत्तराखंड में लगभग 15,000 से अधिक सरकारी स्कूल हैं, जिनमें प्राथमिक, उच्च प्राथमिक, और माध्यमिक स्कूल शामिल हैं। दुर्गम क्षेत्रों में बड़ी संख्या में स्कूल हैं, लेकिन उनमें शिक्षकों और संसाधनों की भारी कमी है।
सरकारी स्कूलों में शिक्षकों की कुल संख्या लगभग 50,000 कई स्कूलों में एकल शिक्षक ही पूरा विद्यालय संभालते हैं। तो अनेकों स्कूलों में एक विद्यार्थी पर 2 से 4 शिक्षक हैं। यह सही मैनेजमेंट न होना दिखाता हैं जिस के लिए प्रशिक्षित और नियमित शिक्षकों की कमी है, जिसके कारण शिक्षा की गुणवत्ता प्रभावित होती है।
उत्तराखंड के सरकारी स्कूलों में कक्षा 1 से 12 तक लगभग 10 लाख से अधिक विद्यार्थी नामांकित हैं। पहाड़ी क्षेत्रों में नामांकन की दर तो ठीक है, लेकिन वास्तविक उपस्थिति काफी कम है। 30% विद्यार्थी दैनिक स्कूल से नादारत रहते हैं जो चिंता का विषय हैं इस में से sc, st व obc वर्ग के बच्चों की अधिकता हैं जो बहुत ही कमजोर आर्थिक तंगी से जूझ रहे हैं।
पहाड़ी इलाकों के कई स्कूल पुराने और जर्जर भवनों में संचालित हो रहे हैं। बारिश, बर्फबारी, और भूस्खलन जैसी प्राकृतिक आपदाओं से स्कूल भवनों को बार-बार नुकसान पहुंचता है। जिन के रखरखाव के लिए बजट की दिक्क़तें सामने आती हैं ओर बजट मिलने पर कार्य की गुणवत्ता जांच नही होती हैं जिस कारण भवनों के निर्माण में भारी अनियमित्ता बरती जाती हैं। कई स्कूलों में शौचालय, पेयजल, बिजली, और इंटरनेट जैसी बुनियादी सुविधाएं नहीं हैं छात्र-छात्राओं के लिए अलग-अलग शौचालय की अनुपलब्धता बालिका शिक्षा पर नकारात्मक प्रभाव डालती हैं। उत्तराखंड सरकार और केंद्र सरकार शिक्षा के लिए हर साल करोड़ों रुपये खर्च करती हैं। 2024-25 में, उत्तराखंड सरकार ने शिक्षा के लिए लगभग 7,000 करोड़ रुपये आवंटित किए। मिड-डे मील योजना, स्कूल भवन निर्माण, और शिक्षकों के प्रशिक्षण पर बड़ा हिस्सा खर्च होता है। जिस का परिणाम धरातल से रसातल में चला गया हैं।
दुर्गम क्षेत्रों में स्कूलों के लिए “ऑपरेशन कायाकल्प” योजना लागू की गई है।
बालिका शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए सरकार ने मुफ्त साइकिल वितरण और वजीफा योजनाएं शुरू की हैं। बावजूद इस के शिक्षा में सुधार नही हो रहा हैं। आबिभावक बहुत सिमित आय के आधन होने के बावजूद भी निजी विद्यालयों का रुख कर रहे हैं।
उत्तराखंड के सरकारी स्कूलों में OBC और SC/ST समुदाय के विद्यार्थियों की संख्या सामान्य वर्ग के मुकाबले अधिक है।
SC/ST वर्ग के लिए सरकार विशेष छात्रवृत्ति योजनाएं लागू करती है। फिर भी इस वर्ग की शिक्षा स्तर में सुधार की गति को बल नही मिल रहा हैं। इस बात को नकारा नही जा सकता हैं कि विगत 10 वर्षों में बालिकाओं की शिक्षा में सुधार हुआ है, लेकिन दुर्गम इलाकों में यह अभी भी चिंता का विषय है। बालिकाओं ने कक्षा 10 व 12 विं के बाद विद्यालय जाना छोड़ दिया हैं इस का कारण दुर्गमता निर्धानता व दूर दराज क्षेत्र में महा विद्यालय का होना हैं। सरकारी स्कूलों में नामांकित विद्यार्थियों में लगभग 55% बालक और 45% बालिकाएं हैं। जो खुशी की बात हैं।
उत्तराखंड के सरकारी स्कूलों की शिक्षा का स्तर गिरने के प्रमुख कारण हैं। कई स्कूलों में शिक्षकों के पद खाली हैं। विषय विशेषज्ञों की कमी विशेष रूप से विज्ञान और गणित में देखने को मिलती है। स्कूलों में पर्याप्त बुनियादी ढांचे का अभाव है। डिजिटल शिक्षा के लिए उपकरण और इंटरनेट की सुविधा नहीं है। विशेष रूप से कक्षा 8 के बाद विद्यार्थियों की ड्रॉपआउट दर बढ़ जाती है।
आर्थिक कठिनाइयों और रोजगार के दबाव से बच्चे पढ़ाई छोड़ देते हैं। अभिभावक सरकारी स्कूलों की तुलना में निजी स्कूलों को प्राथमिकता देते हैं, जो अंग्रेजी माध्यम और बेहतर सुविधाएं प्रदान करते हैं।
उत्तराखंड के सरकारी स्कूलों में शिक्षा के स्तर को सुधारने के लिए निम्नलिखित कदम उठाए जा सकते हैं। शिक्षकों की नियुक्ति और प्रशिक्षण। प्रशिक्षित और योग्य शिक्षकों की भर्ती की जाए। दुर्गम क्षेत्रों में तैनात शिक्षकों के लिए विशेष प्रोत्साहन दिया जाए। दुर्गम क्षेत्रों के लिए विशेष शिक्षा नीति बने। स्कूलों में स्मार्ट क्लासरूम, ई-लर्निंग सामग्री, और इंटरनेट सुविधा उपलब्ध कराई जाए। छात्रों को डिजिटल तकनीकों से परिचित कराया जाए। स्कूल भवनों को मजबूत और सुरक्षित बनाया जाए।
सभी स्कूलों में शौचालय, पेयजल, और बिजली की व्यवस्था सुनिश्चित की जाए।
ग्रामीण समुदायों और NGOs को शिक्षा सुधार में शामिल किया जाए। स्थानीय लोगों को स्कूल प्रबंधन समितियों में सक्रिय भूमिका दी जाय छात्रवृत्ति और आर्थिक सहायता। गरीब छात्रों को वजीफा, मुफ्त पाठ्यपुस्तकें, और वर्दी प्रदान की जाए।
बालिका शिक्षा के लिए विशेष योजनाएं शुरू की जाएं। किशोरियों के लिए सैनिटरी पैड और अन्य स्वास्थ्य सुविधाएं उपलब्ध कराई जाएं।
राज्य के लिए विशेष शिक्षा नीति बनाई जाए, जिसमें पहाड़ी क्षेत्रों की जरूरतों को प्राथमिकता दी जाए। शिक्षा के लिए आवंटित बजट का सही और पारदर्शी उपयोग सुनिश्चित किया जाए। कौशल विकास कार्यक्रमों और व्यावसायिक पाठ्यक्रमों को स्कूल शिक्षा में शामिल किया जाए। तकनिकी शिक्षा पर विशेष ध्यान दिया जाय कौशल विकास के कार्य को पाठ्यक्रम में जोड़ा जाय भौगोलिक परिस्थितियों के अनुसार नियमावली बने। समूचे प्रदेश पर एक ही शिक्षा नीति लागू न किया जाय। शिक्षकों को मात्र शिक्षा कार्य की जिम्मेदारी दी जाय अन्य सरकारी योजनाओं के प्रचार प्रसार व धरातल स्वरूप हेतु अलग से कर्मचारियों का गठन हो। शिक्षकों के कांधो पर शिक्षा का बोझ हो न कि सरकारी योजनाओं का कठरी।