उत्तराखंड में मूल निवास और भू कानून क्यों खत्म हुआ !

समस्त उत्तराखंड आंदोलनकारियों तथा तमाम शहादतों के प्रति पर्याप्त आदर और सम्मान बनाए रखने के साथ-साथ हमें इस बात पर भी गंभीरता से मनन करना चाहिए कि यह राज्य अगर केवल और केवल आंदोलन के कारण बना होता तो 1994 के कांड के बाद ही बन गया होता।
छह साल बाद 9 नवंबर 2000 को, जब कहीं कोई आंदोलन नहीं था, राज्य की मांग के लिए कहीं कोई धरना प्रदर्शन नहीं था, जब सबने लगभग मन बना लिया था कि अब शायद ही राज्य बनेगा, तब क्यों बना !!
और यदि यह राज्य उत्तराखंड की जनता के लिए बना होता तो पहले मुख्यमंत्री नित्यानंद स्वामी ही क्यों थोपे गए होते!
मूल निवास और भू कानून क्यों खत्म हुआ !
आखिर क्यों हमारे नेता कभी मेरठ और कभी सहारनपुर को उत्तराखंड में मिलने की बात करते हैं!
अगर कोई साथी वाकई में उत्तराखंड की बेहतरी के लिए एक नए संघर्ष को ईमानदारी के साथ शुरू करना चाहते हैं तो सबसे पहले इस बात को स्वीकार करना होगा कि यह राज्य ना हमारे संघर्ष के कारण बना और ना हमारे लिए बनाया गया !
सिर्फ संघर्ष के कारण ही राज्य बनने होते तो छत्तीसगढ़ झारखंड और तेलंगाना जैसे राज्य बिना किसी संघर्ष के कैसे बन गए !
हमे दखना होगा कि यह राज्य नेताओं ने अपनी सुविधा, अपने वक्त परिस्थिति को देखते हुए बनाया है।
इस तथ्य को ईमानदारी के साथ स्वीकार करने के बाद ही हम इस राज्य की बेहतरी के लिए एक वास्तविक शुरुआत कर सकते हैं।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *