उत्तराखंड के दर्शकों के लिए है एक नायाब तोहफा गढ़वाली फिल्म “मेरु गाँव “
कल गढ़वाल भवन में अनुज जोशी द्वारा लिखित व् निर्देशित गढ़वाली फिल्म ” मेरु गाँव “, देखने का मौका मिला.
फिल्म में कई मर्तबा पुरुस्कृत मंझे हुए कलाकार राकेश गौर ने लीड रोल किया और दर्शकों को अपने बेमिसाल अभिनय से आखिर तक बांधे रखा.
करीब ढाई घंटे की यह फिल्म जो एक गाँव की पृष्भूमि पर आधारित है.मूलतः गाँव से निरंतर हो रहे पलायन, इस पलायन के पीछे जिम्मेदार स्वास्थय सेवाओं, अच्छी शिक्षा का अभाव , रोजगार का न होना आदि कारणों को गिनाते हुए ये फिल्म गाँव के निरंतर खाली होने की कहानी है .
फिल्म का सारा ताना बाना गाँव में रह रहे एक परिवार जिसके मुख्या हैं फिल्म के मुख्य किरदार राकेश गौर जो कनिष्ट वैज्ञानिक रहे और गाँव से अटूट प्रेम होने के कारण व् माँ की मरने से पहले दी गयी सीख के चलते गाँव लौट आते हैं और कुछ परिवारों के इर्द गिर्द घूमती है.
बीच 2 में उत्तराखंड बनने के बाद और पहले के पृथक राज्य आंदोलन , राज्य के चौमुखी विकास , राजधानी गैरसैण के सवाल , स्वास्थय , शिक्षा सम्बंधित विकास , गांव के निर्जन, खाली होने की चिंता पर भी बीच बीच में बहस दिखाई गयी है.
साथ ही फिल्म को अधिक रोचक बनाने के दृष्टिकोण से इसमें रोज गांव में लोगों को इकठा कर समाचार पत्र के माध्यम से रोचक समाचार सुनाने और अन्य कॉमेडी सीन्स से दर्शकों का अच्छा मनोरंजन किया गया.
फिल्म के गीत और हरे भरे खेतों में इनका फिल्मांकन खुशाल सिंह रावत , भी बेहद सराहनीय है.
फिल्म की स्टोरी और सही फिल्मांकन सभी दर्शकों को आखिर तक बांधकर रखता है और फिल्म के ख़त्म होने के बाद भी लोग अपनी सीटों से नहीं उठते.
फिल्म के मुख्य कलाकार राकेश गौर और उनकी परदे पर पत्नी सुमन गौर की एक्टिंग बेमिसाल थी जिन्होंने दर्शकों को कई मर्तबा रुलाया भी.
फिल्म के अन्य कलाकार डूकलांजी, रमेश टांगरीयल , डॉ सतिष्कालेश्वरी , अजय बिष्ट , सुशीला रावत ( उत्तराखंड की पहली डायरेक्टर),खुशाल सिंह रावत , सुशीला रावत आदि ने इस फिल्म में अपने अपने रोल बखूबी निभाए और सभी को प्रभावित किया.
फिल्म की जितनी प्रसंशा की जाय कम है क्योंकि इस फिल्म में काम कर रहे बाल कलाकारों , पुत्रवधु और अखबार समाचार सुनाने वाले बुजुर्ग से रोजाना पंगे लेने वाली कलाकार का प्रदर्शन खासा प्रभावशाली रहा . रमेश टांगरीयाल जी के औजी के किरदार ने सभी का मन मोह लिया. इंग्रेजी बाउजी ने अपनी बेमिसाल एक्टिंग से सबका दिल जीत लिया और स्टोरी में हिंदी फिल्मो का तड़का सा जोड़ दिया जिन्हे सभी दर्शकों ने बहुत सराहा.
मैं इसे एक आउटस्टैंडिंग फिल्म का दर्जा दूंगा जो उत्तराखंड के पलायन , स्वस्थ सेवाओं, रोजगार, शिक्षा, राजधानी गैरसैण और खाली होते गाँव के अहम् सवालों से झुझते हुए दर्शकों के मनोरंजन का भी ख्याल रखती है और अच्छे संगीत व गीतों से सबका मनोरंजन किया. हार्दिक बधाई
सुनील नेगी ,अध्यक्ष, उत्तराखंड जर्नलिस्ट्स फोरम