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Uttrakhand

उत्तराखंड के गांधी स्व इंद्रमणि बडोनी जी की पुण्य तिथि पर उन्हें कोटि कोटि नमन एवम विनम्र श्रद्धांजलि

भगवान सिंह चौधरी

उत्तराखंड के गांधी कहे जाने वाले इंद्रमणि बडोनी जी और उनके जनसंघर्षों के बारे में जानि‍ए अलग राज्य बनाने के लिए आंदोलन की शुरुआत करने वाले इंद्रमणि बड़ोनी जी को उत्तराखंड का गांधी यूं ही नहीं कहा जाता है इसके पीछे उनकी महान तपस्या व त्याग रहा है। राज्य आंदोलन को लेकर उनकी सोच और दृष्टिकोण को लेकर आज भी उन्हें शिद्​दत से याद किया जाता है।
उत्तराखंड को अलग राज्य बनाने के लिए आंदोलन की शुरुआत करने वाले इंद्रमणि बड़ोनी जी को उत्तराखंड का गांधी यूं ही नहीं कहा जाता है, इसके पीछे उनकी महान तपस्या व त्याग रही है। राज्य आंदोलन को लेकर उनकी सोच और दृष्टिकोण को लेकर आज भी उन्हें शिद्​दत से याद किया जाता है। इंद्रमणि बड़ोनी जी 24 दिसंबर, 1925 को टिहरी जिले के जखोली ब्लॉक के अखोड़ी गांव में पैदा हुए थे। उनके पिता का नाम सुरेश चंद्र बडोनी था। साधारण परिवार में जन्मे बड़ोनी जी का जीवन अभावों में गुजरा। उनकी शिक्षा गांव में ही हुई। देहरादून से उन्होंने स्नातक की उपाधि हासिल की थी। वह ओजस्वी वक्ता होने के साथ ही रंगकर्मी भी थे। लोकवाद्य यंत्रों को बजाने में निपुण थे। वर्ष 1953 का समय, जब बड़ोनी जी गांव में सामाजिक व सांस्कृतिक कार्यों में जुटे थे। इसी दौरान राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की शिष्या मीराबेन टिहरी भ्रमण पर पहुंची थी। बड़ोनीजी की मीराबेन से मुलाकात हुई। इस मुलाकात का असर उन पड़ा। वह महात्मा गांधी की शिक्षा व संदेश से प्रभावित हुए। इसके बाद वह सत्य व अहिंसा के रास्ते पर चल पड़े। पूरे प्रदेश में उनकी ख्याति फैल गई। लोग उन्हें उत्तराखंड का गांधी बुलाने लगे थे। इंद्रमणि बडोनी जब नेता के तौर पर उभर गए थे। वर्ष 1992 में मकर संक्रांति के दिन बागेश्वर के प्रसिद्ध उत्तरायणी कौतिक से उन्होंने उत्तराखंड की राजधानी गैरसैंण करने की घोषणा कर दी थी। हालांकि आज तक गैरसैंण स्थायी राजधानी नहीं बन सका। पहाड़ के लोग पहाड़ में ही राजधानी बनाने के लिए संषर्घरत हैं।

उत्तराखंड राज्य चाहते थे बडोनी

उत्तराखंड को लेकर इंद्रमणि बडोनी जी का अलग ही नजरिया था। वह उत्तराखंड को अलग राज्य चाहते थे। वर्ष 1979 में मसूरी में उत्तराखंड क्रांति दल का गठन हुआ था। वह इस दल के आजीवन सदस्य थे। उन्होंने उक्रांद के बैनर तले राज्य को अलग बनाने के लिए काफी संघर्ष किया था। उन्होंने 105 दिन की पद यात्रा भी की थी।
तीन बार विधायक बने थे बडोनी जी
तब उत्तराखंड क्षेत्र में बडोनी जी का कद बहुत ऊंचा हो चुका था। वह महान नेताओं में गिने जाने लगे। सबसे पहले वर्ष 1961 में अखोड़ी गांव में प्रधान बने। इसके बाद जखोली विकास खंड के प्रमुख बने। इसके बाद देवप्रयाग विधानसभा सीट से पहली बार वर्ष 1967 में विधायक चुने गए। इस सीट से वह तीन बार विधायक चुने गए। हालांकि उन्होंने सांसद का भी चुनाव लड़ा था। कांटे की टक्कर हुई थी। अपने प्रतिद्वंद्वी ब्रहमदत्त से 10 हजार वोटों से हार गए थे। संघर्ष करते हुए बड़ोनी का 18 अगस्त, 1999 को देहावसान हो गया।

क्या बडोनी जी के सपने को साकार होने की उम्मीद है

बड़ोनी जी जैसे महान नेताओं ने राज्य को जो विजन दिया था, आज तक हमारे नेता उसे पूरा नहीं कर पाए। वह राज्य को समृद्ध बनाना चाहते थे। शिक्षा, स्वास्थ्य, पर्यटन, रोजगार को लेकर बहुत अधिक सजग रहा करते थे। उत्तराखंड राज्य बने आज 23 साल हो गए है इन तेईस सालों में उत्तराखंड की सरकारों ने भू कानून में बदलाव करके उत्तराखंड की जमीनें बेचने के रास्ते सरल बना दिए है उत्तराखंड के मूल निवासियों का मूल निवास खत्म कर के स्थाई निवास कर दिया है अगर घनसाली विधान सभा की बात करें तो जो स्कूल, कॉलेज, बडोनी जी के समय में थे वो आज भी उसी हालत में है कई कॉलेजों में कई सालों से अंग्रेजी, गणित फिजिक्स, कैमस्ट्री के प्रवक्ता नही है , उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए यहां के बच्चों को श्रीनगर, और देहरादून ही जाना पड़ता है , वही हाल स्वास्थ्य से सम्बन्धित हैं बीमार व्यक्ति को देहरादून रेफर कर दिया जाता है जबकि चार धामों को जाने वाले यात्री घनसाली से ही हो कर यात्रा करने आते भी है और जाते भी है पलायन चर्म सीमा से हो रहा है रोजगार के कोई साधन नहीं है अगर सरकारी रोजगार है तो उस पर राजस्थान ,हरियाणा और पश्चिम यूपी के युवाओं को भरा जा रहा है अकेले आई आई एम एस (एम्स ) ऋषिकेश में राजस्थान के 600 बच्चों को नौकरी पर रखा गया , बडोनी जी के ग्यारह गांव हिंदाव में सिंचाई की कोई व्यवस्था आज तक नही हो पाई है , उत्तराखंड के युवाओं का ब्यूरोक्रेसी में ना मात्र परिणाम है क्योंकि उत्तराखंड सरकार यू पी एस सी के छात्रों को किसी भी प्रकार से प्रोत्साहित नही करती है जिसका नतीजा यह है की 23 सालों में भी उत्तराखंड सचिवालय में ऊंचे पदों पर उत्तराखंड की नमात्र भागीदारी है जय देव भूमि, जय उत्तराखंड

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