उत्तराखंड के कांग्रेसी नेताओं को हर हाल में मस्त रहना चाहिए , क्योंकि अगर वे अध्यक्ष भी बन गए – राहुल , सोनिया जी को क्या उनकी परवाह है ?

राष्ट्रीय कार्यकारिणी में जगह न दिए जाने पर अपने प्रदेश के अनेक कांग्रेसियों का विलाप देख सुन रहा हूं. लेकिन उन्हें निश्चिन्त रहना चाहिए कि अगर वह कार्यकारिणी के सदस्य क्या, अध्यक्ष भी बन गए तब भी उनके आला कमान को उनकी परवाह और पहचान नहीं है..
: एक उदाहरण से समझाता हूं.
: देहरादून में राजपुर रोड पर कई दशक से एक प्रॉपर्टी पर किरायेदार थे. दुकानों का किराया 1 रूपये प्रति माह से बढ़ते बढ़ते 20 या 25 रूपये महीने तक पहुंच गया, और प्रति बनिये पर दो दो हज़ार का बकाया चढ़ गया, पर पट्ठे ने न भुगतान किया, कोइ मांगने आया.
1980 के आसपास एकदिन अचानक विश्वनाथ प्रताप singh नामक एक सज्जन उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री बन गए. तभी यह पता चला कि यह उनकी प्रॉपर्टी है, जिस पर बनिये मज़े लूट रहे हैं.: अब उनके हलक सूख गए. बूझ गए कि किसी भी दिन अब पुलिस लठ फेर कर किराया भी वसूलेगी, और बे दखल भी करेगी.
कोई इक्का दुक्का पुलिस वाला उधर से गुज़रता, तो दुकान खुली छोड़ भाग जाते.
एक दिन उनके किसी बुजुर्ग ने उपाय सुझाया और वे एक अर्ज़ी लेकर 😂सम्पत्ति के मालिक मुख्यमंत्री के पास लखनऊ पहुंच गए.
अर्ज़ी में लिखा था – सेवा में मुख्यमंत्री महोदय. उत्तरप्रदेश.
महोदय हम लोग वर्षो से अमुक प्रॉपर्टी पर रह कर अपने बच्चे पाल रहे हैं.
इन दुकानों का किराया बहुत कम है. अतः महोदय से निवेदन है कि हम पर किराया बढ़ाने की कठोर कार्रवाई की जाये. तथा किराया बढ़ा कर कमसे कम 25 रूपये महीना किया जाये, तथा बकाया भी वसूला जाये.
विश्वनाथ जी की कुछ समझ में नहीं आया. दर असल उनके पूर्वजों ने कभी मसूरी जाते हुए अपने नौकरों तथा घोड़ों के लिए ये मकान बनाये थे.
विश्वनाथ जी को कुछ पता नहीं था. उन्होंने यह कागज़ सेक्रेटरी को देकर समस्या सुलझाने को कहा.
पता लगने पर विश्वनाथ जी खूब हँसे, तथा बनियों से कहा कि वे निश्चिन्त रहें. उनसे दुकाने ख़ाली नहीं कराई जाएंगी. पिछला भुगतान देने कि आवश्यकता नहीं है. वे चाहें तो नियत किराया दस बारह रूपये महीना देते रहें. न भी दे, तो कोइ बात नहीं
इसी तरह कांग्रेसी मित्रों को मेरी सलाह है कि वे कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष भी बन जायें, तब भी सोनिया अथवा rahul गाँधी को उनकी कोई ख़बर नहीं है, न होगी.
अतः जहां हैं मस्त रहें.
जैसे राजपुर रोड के बनिये आज भी उन दुकानों का दस रूपये किराया दिए बगैर मस्त रह रहे हैं.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *