उत्तराखंड की संस्कृति की ‘पुंगी‘ बजा रही वीना
- लोकगायक नरेंद्र सिंह नेगीदा को तीन लाख नहीं दिये, पवनदीप को दस लाख दे दिये
- हेमा मालिनी का निनाद से क्या लेना-देना? स्पर्शगंगा की थी ब्रांड अम्बेसडर, 13 साल बाद दिखाएगी शक्ल
संस्कृति विभाग गढ़ी कैंट में सात से दस जुलाई तक निनाद कार्यक्रम का आयोजन कर रहा है। इस कार्यक्रम का उद्देश्य हमारी लोक कला और संस्कृति का संरक्षण और हमारे कलाकारों का संर्वद्धन करना है। लेकिन संस्कृति विभाग का गजब तमाशा है। जानकारी के मुताबिक इंडियन आइडल फेम पवनदीप और उसकी दोस्त को दस लाख रुपये का भुगतान किया जा रहा है जबकि वह उत्तराखंड की संस्कृति से कहीं दूर बालीवुड में डेरा डाले हुए हैं। जबकि ढाई से तीन लाख में दस कलाकारों के साथ प्रफोर्म करने वाले प्रसिद्ध लोकगायक नरेंद्र सिंह नेगी, 2 लाख में पदमश्री प्रीतम भरतवाण या 1.5 से दो लाख में लोकगायक किशन महिपाल और उनकी टीम को लिया जा सकता था। ये लोकगायक हमारे बीच, हमारे उत्तराखंड में रहते हैं
और जीवन पर्यंत इन्होंने पहाड़ की संस्कृति और सभ्यता को संवर्द्धन और संरक्षण करने का काम किया।
संस्कृति विभाग की वीना हमारे प्रदेश की संस्कृति की गजब पुंगी बजा रही है। चलो मान लिया कि पवनदीप को ले भी लिया। लेकिन हेमामालिनी का निनाद से क्या लेना-देना? हेमामालिनी को क्यों बुलाया गया नृत्य करने? एक नृत्यांगना से कहीं अधिक राजनेता बन चुकी है हेमामालिनी। वैसे भी हमें भूलना नहीं चाहिए कि निशंक राज में हेमामालिनी स्पर्शगंगा की ब्रांड अम्बेस्डर बनी थी। हरिद्वार किनारे उन्होंने नृत्य पेश किया। पैसे वसूले और 13 साल बाद अब फिर जनता की मेहनत का पैसा लूटने आ गयी। हद है। उधर, सुना है कि निशंक की सुपुत्री स्पर्शगंगा के नाम का दुरुपयोग कर रही हैं।
संस्कृति विभाग में वीना भट्ट की कारगुजारियों से सब संस्कृति प्रेमी और लोक कलाकार वाकिफ हैं। वर्षाें से इस विभाग में जमी बैठी हैं लेकिन संस्कृति के संवर्द्धन और संरक्षण की बात करें तो उनकी उपलब्धियां नगण्य ही निकलेंगी। जल्द ही मैं इस वीना के उपलब्धियों का खुलासा करूंगा। यह भी बता दूं कि चार दिनों के इस कार्यक्रम में मयूर व्यूह और कुछ गढ़वाली नृत्यों को छोड़कर गढ़वाली संस्कृति की उपेक्षा की गयी है। बताया जाता है कि सूचना विभाग के एक अफसर को खुश करने के लिए ढेर सारे जौनसारी नृत्य रखे गये हैं। जबकि सभी क्षेत्रों के कलाकारों को मौका मिलना चाहिए था। मैं स्पष्ट कर दूं कि इस बार संस्कृति विभाग को पाई-पाई का हिसाब देना होगा।