आखिर क्यों बनती जा रही है उत्तराखंड के टिहरी जिले की घनसाली विधान सभा की भिलंगना घाटी आपदा घाटी ?
भगवान सिंह चौधरी, टिहरी गढ़वाल उत्तराखंड
यह विनाशलीला लिखने वाला आखिर है कौन? प्रकृति ने तो हमें बेहतरीन जलवायु, वनस्पतियां, जल-जंगल-जमीन, वन्य जीव और जलचर, नभचर प्राणी दिए। बेशुमार वन औषधियों का भंडार और तरह तरह कर पशु-पक्षी भी दिए है परन्तु बदले में हम विकास के नाम पर इस अमूल धरा को खोद खोदकर लहूलुहान करते चले गए। जहां पानी है वहां बांध, जहां रेत है वहां खनन, जहां जंगल है वहां आग और जहां वनस्पति हैं वहां नाश करते रहे है और कर रहे है विकास के नाम पर हम विनाश की ऐसी कहानी लिखते हुए आगे बढ़ रहे हैं कि जिसका क्षणिक लाभ मात्र कुछ बर्षों के लिये तो दिख जाएगा लेकिन उसका विनाश कहाँ तक कितनों को लपेटकर आगे बढ़ेगा यह विकास नाम का यह अंधा युग अभी समझ नहीं पा रहा है। प्रकृति तो अभी आपदा के नाम पर सिर्फ ट्रेलर दिखा रही हैं। जिस दिन नदियों पर बने ये बांध टूटने या फटने प्रारम्भ होंगे उस दिन न घाटियां बचेंगी न नदी घाटियों में बचे बसे गांव ,शहर ,व मैदान कुछ नही बचेगा , यदि हम पिछले दस सालों को पलट कर देखेंगे ,तो पाएंगे की 2013 को उत्तराखंड के बाबा श्री केदार नाथ में आई भयंकर आपदा के बाद कई छोटी मोटी आपदाएं उत्तराखंड में बहुत आई है परन्तु जोशी मठ की आपदा , ऋषि गंगा की आपदा किसी से छुपी नहीं है आपदाएं आती है और हम थोड़ी देर बाद भूल जाते है अभी अभी कुछ महीने पहले हिमाचल में हुई भयंकर तबाही को भी हम भूल गए , आज कल कुछ दिन पहले नागपुर में आई भयंकर बाड़ जैसी घटनाएं दिन प्रतिदिन बढ़ती ही जा रही है हम एक आपदा को भूलते है तब तक दूसरी आ जाती है कभी उत्तराखंड में तो कभी देश के अन्य प्रदेशों में कभी विदेशों में भी देखने को मिलती है जिसका मुख्य कारण हम इंसानों का लालच और लापरवाही ही इसका मुख्य कारण है आज घनसाली विधान सभा, के भिलंगना ब्लॉक,के भिलंग पट्टी से जो डरावनी तस्वीर आ रही हैं जिसमे छः ग्राम सभाओं पर खतरा मंडरा रहा है जिसका मुख्य कारण गांव वाले और क्षेत्र वासी भिलंगना हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट को बता रहे है इस बात से इंकार भी नही क्या जा सकता है परंतु प्रश्न तो कई खड़े होते है कि ( १) इस हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट की N. O. C. किन जन प्रतिनिधियों ने दी है (२) क्या इस जगह का टेक्निकली, फिजिकली, और ज्योलोजिकल सर्वे हुआ था , अगर हुआ था तो ऐसा क्यों हुआ, अगर नही हुआ तो क्यों नही हुआ है (३) क्या इस हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट से प्रभावित होने वाले क्षेत्र के अंतर्गत निवास करने वालों के लिए कोई विस्थापन की योजना बनाई है (४) गांव के लोगों की आजीविका कृषि भूमि पर और पशु पालन पर निर्भर रहती है उनकी आजीविका कैसे चलेगी अब इन छ गांव के लोगों पर संकट के बादल छाए है शासन प्रशासन (सरकार ) को इस इलाके का तुरंत सर्वे करवाना चाहिए, और जितने भी गांव खतरे की जद में है उनका तुरंत विस्थापन करना चाहिए , खतरे की जद में आए प्रतेक परिवार के एक सदस्य को सरकारी नौकरी देनी चाहिए ,तथा परिवार में जितने भी मेंबर्स है उन सबको उचित मुआवजा देना चाहिए, इतना सब कुछ जानने समझने के बाद भी सिर्फ धन कमाने में जुटे सफेदपोश व ऊंची कुर्सियों पर बैठे नीति-नियंता अगर आये दिन हिमालय को खोखला कर रहे हैं तो उसके दोषी वे लोग कम और हम ज्यादा हैं। क्योंकि हम सोये हुए प्रदेश के खोये हुए वासी हैं। हर साल तबाही में अपनों को खोना। घर, गांव मनुष्य व मानवता को खोते रहना ही हमारी नियति में लिखा है। जाने कब जागेगी हमारी कुम्भकरणी नींद, क्योंकि अभी समय रहते जाग जायेंगे तो ठीक है नही तो एक महीने बाद सर्दी शुरू हो जाएगी और जिस तरह जलवायु परिवर्तन हो रहा है जिसमें प्राकृतिक आपदा न सर्दी देख रही है न गर्मी , अब तो कभी भी और कहीं भी बेमौसम में ही बादल फट रहे है इसलिए क्षेत्र वासियों को जाग जाना चाहिए और सभी राजनीतिक सामाजिक संगठनों को सरकार पर विस्थापन तथा मुआवजे के लिए दबाव डालने के लिए अपने प्रयास तेज करने चाहिए नही तो वो दिन दूर नहीं होगा, जिन कारों में आकर आपको विकास के सपने दिखाए गए , कही उन्ही कारों में आकर आपदा की तस्वीर खींच कर न दिखाएं इसलिए समय पर जागना ही समझदारी है I