अद्भुत! असाधारण! विलक्षण!जहां चाह, वहां राह : महामहिम राष्ट्रपति महोदय द्वारा देश के चतुर्थ सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘पद्मश्री पुरस्कार’ से अलंकृत श्री. जाधव पियेंग
आसाम निवासी एक आदिवासी बंधु की अविश्वसनीय, अद्भुत एवं अद्वितीय सत्यकथा, जिनके कामो की गूंज ब्रह्मपुत्र की लहरों में बहते, घने पेड़ो की सरसराहट से होते हुए, सोंधी जंगली हवाओं में महकते, हज़ारो किलो मीटर दूर दिल्ली में ‘राष्ट्रपति भवन’ तक पहुंची।
इन अत्यधिक सीधेसाधे आदिवासी बंधु का नाम है श्री. जाधव पीयेंग जी।
इनकी अद्वितीय जीवनगाथा जानने से पहले एक छोटी सी जान लें कि, ब्रह्मपुत्र नदी को पूर्वोत्तर का अभिशाप भी कहा जाता है।
इसका कारण यह है कि, जब यह आसाम तक पहुँचती है, तो लंबे अंतर से बहाकर लायी हुई मिटटी, रेत और पहाड़ी पथरीले अवशेष विशाल द्रव मलबे के रूप में साथ अपने लाती है।
इससे नदी की गहराई अपेक्षाकृत कम होकर चौड़ाई में फैलकर किनारे पर स्थित गांवो को गंभीरता से प्रभावित करती है।
मानसून में इसके विशाल चौड़े पात्र प्रति वर्ष अनगिनत पेड़ पौधों, हरियाली और गांवो को अपने संग बहा ले जाते हैं।
ब्रह्मपुत्र नदी का विशालता से फैला हरियाली रहित, बंजर रेतीला तट लगभग रेगिस्तान लगता था।
चलिए अब आते हैँ हमारे कहानी के प्रमुख नायक श्री. जाधव पियेंग जी पर।
वर्ष 1979 में जाधव 10वी कक्षा की परीक्षा देने के बाद अपने गाँव में ब्रह्मपुत्र नदी के बाढ़ का पानी उतरने पर इसके बरसाती भीगे रेतीले तट पर घूम रहे थे।
तभी उनकी दृष्टि लगभग 100 मृत सापों के विशाल गुच्छे पर पड़ी। वे आगे बढ़ते गए, तो नदी का संपूर्ण तट मृत जीव जंतुओं से अटा पड़ा एक मरघट सा था।
उन मृत जानवरों के शवों के कारण वहां पग रखने की जगह तक नही थी। इस दर्दनाक सामूहिक निर्दोष जीवों की असामयिक मृत्यु के दृष्य ने बालक जाधव जी के किशोर मन को झकझोर दिया।
हजारों की संख्या में निर्जीव जीव जंतुओं की निस्तेज फटी मुर्दा आँखों ने बालक जाधव जी को अनेक रातों तक चैन से सोने न दिया।
गाँव के ही एक आदमी ने चर्चा के दौरान विचलित बालक जाधव पियेंग जी से कहा :- नदी तो हर वर्ष तटीय जंगल का सर्वनाश कर देती है। जब नए पेड़ पौधे ही नही उग रहे हैं, तो नदी के रेतीले तटों पर जानवरों को बाढ़ से बचने आश्रय कहाँ मिले ? जंगलों के बिना इन्हें भोजन कैसे मिले ?
यह बात बालक जाधव पियेंग जी के मन में पत्थर की लकीर बन गयी कि, जानवरों को बचाने पेड़ पौधे लगाने ही होंगे।
50 बीज और 25 बांस (बांबू) के पेड़ लिए 16 साल के बालक जाधव पियेंग जी नदी के रेतीले किनारे पर रोपने के असंभव से लक्ष्य को लेकर निकल पड़े।
यहआज से 35 वर्ष पुरानी सत्य घटना है।
वह एक दिन था और आज का दिन है।
क्या आप कल्पना कर सकते हैं कि, इन 35 वर्षों में श्री. जाधव पियेंग जी ने किसी भी शासकीय अथवा निजी सहायता के बिना 1360 एकड़ का विशाल जंगल लगा डाला है ?
क्या आप विश्वास करेंगे कि, एक अकेले व्यक्ति के लगाये गए जंगल में 5 बंगाल टाइगर, 150 जंगली हाथी, 100 से अधिक हिरण, विशाल आकार वाले गैंडे, जंगली सुवर एवं अनेक जंगली पशु विचरण कर रहे हैं।
और हाँ! अनेक प्रजातियों सांप भी, जिन्होंने इस सामान्य बालक के अंदर छिपे अद्भुत नायक को पहचान दी।
श्री. जाधव पियेंग जी जंगलों का क्षेत्रफल बढाने के पवित्र उद्देश्य से प्रतिदिन सुबह 9:00 बजे घर से निकलकर 05 किलोमीटर साइकल से जाने के बाद, ब्रम्हपुत्र नदी का विशाल चौड़ा तट पार करते।
फिर दूसरे तट पर जाकर वृक्षारोपण करते। पहले लगाए गए पौधों को नदी में उतरकर कंधे पर पानी लाकर उन्हें पानी देते।
फिर सांझ ढले नदी पार करके साइकल 05 किलोमीटर का अंतर पार करके अपने पुनः अपने घर पहुँचते।
विगत 35 वर्षों से नितंत्र यही उनकी नियमित दिनचर्या बन गई है।
इनके लगाये पेड़ो में कटहल, गुलमोहर, अनानस, बांस, साल, सागौन, सीताफल, आम, बरगद, शहतूत, जामुन, आडू एवं अन्य अनेक औषधीय पौधे हैं।
परंतु सर्वाधिक आश्चर्यजनक एवं उतना ही दुर्भाग्यपूर्ण तथ्य यह भी है कि, इस असंभव से कार्य को संभव करके दिखाने वाले इस महान साधक से केवल 05 वर्ष पहले तक हमारा देश पूर्णतः अनभिज्ञ था।
ये लौहपुरुष अपनी ही धुन में अकेले आसाम के जंगलों में साइकल पर पौधो से भरा एक थैला लिए अपने बनाए जंगल में गुमनाम यात्रा कर रहे थे।
ये महापुरुष सन 2010 में सर्वप्रथम तब देश की दृष्टि में आये, जब वाइल्ड फोटोग्राफर श्री. जीतू कलिता जी ने इनके असाधारण जीवन पर डाक्यूमेंट्री फिल्म बनाई।
उस डॉक्यूमेंट्री का नाम था The Molai Forest।
यह प्रेरणादायक फिल्म देश के नामी विश्वविद्यालयों में दिखाई गयी।
आरती श्रीवास्तव जी ने ‘Foresting Life’ नामक द्वितीय फ़िल्म बनाई, जिसमें श्री. जाधव पियेंग जी के जीवन से संबंधित समस्याओं एवं अनछुए तथ्यों को उजागर किया।
तृतीय फिल्म ‘Forest Man’ को आंतरराष्ट्रीय फिल्म महोत्सव में भी भरपूर सराहना मिली। तब हमें इनके बारे में जानकारी प्राप्त हुई।
एक अकेला अत्यंत साधारण परिवार का व्यक्ति वन विभाग की प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष सहायता के बिना, किसी सरकारी आर्थिक सहायता के बिना, जो इतने पिछड़े क्षेत्र से हैं कि, जिनके पास पहचान पत्र के रूप ‘राशन कार्ड’ तक नही है, ने हजारों एकड़ में फैला पूरा जंगल खड़ा कर दिया।
अब उनके नाम पर आसाम के इन वनों को ‘मिशिंग जंगल’ कहते हैं। श्री. जाधव पियेंग जी आसाम की ‘मिशिंग जनजाति’ से हैं।
जीवन यापन करने के लिए इन्होंने गायें पाल रखी थी। जंगली शेरों द्वारा उनकी आजीविका के एकमात्र साधन (उनकी पालतू गायों) को खा जाने के बाद भी जंगली जानवरों के प्रति इनकी करुणा कम नही हुई।
उनके मुख से यही निकला :- शेरों ने मेरा नुकसान किया, क्योकि वे अपनी भूख मिटाने के लिए खेती करना नही जानते। अगर आप जंगलों को नष्ट करोगे, तो वे आपको नष्ट कर देंगे।
एक वर्ष पहले महामहिम राष्ट्रपति महोदय द्वारा देश के चतुर्थ सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘पद्मश्री पुरस्कार’ से अलंकृत श्री. जाधव पियेंग जी आज भी आसाम में बांस के बने एक कमरे के छोटे से कच्चे झोपड़े में अपनी पुरानी दिनचर्या में लीन हैं।
असंख्य सरकारी प्रयासों, वृक्षारोपण के लिए अरबों ₹ के पौधों की खरीदी करके भी पर्यावरण विभाग, वनविभाग वो उच्चतम सफलता प्राप्त नही कर पाते, जो एक अकेले व्यक्ति की प्रबल इच्छाशक्ति ने कर दिखाया।
साइकल पर घातक जंगली जीव जंतुओं के मध्य से पगडंडीयों में पौधों से भरे झोले और कुदाल के साथ हरी भरी प्रकृति की अनवरत साधना में ये निस्वार्थ पुजारी लगे हुए हैं।
अब तक हमने कहावत सुनी थी :- अकेला चना भाड़ नही फोड़ सकता। आपने तो कहावत ही गलत सिद्ध कर दी। अब तो हम संपूर्ण आत्मविश्वास कहेंगे :- अकेला चना भी भाड़ फोड़ सकता है।
आपसे करबद्ध निवेदन हैं कि, पर्यावरण के लिए असीम स्नेह से भीगी इस सार्थक, अनोखी सत्यकथा को अन्य सुजनों तक भी पहुंचा कर सजग बनाएं।
श्री. जाधव पियेंग जी को सहृदय नमन। (विनोद शर्मा व्हाट्सप्प)
निःसन्देह, प्रकृति की गोद में पर्यावरण के लिए बहुत विलक्षण कार्य कर रहें हैं विगत कई दशकों से- जाधव पियंग🙏